मानव जीवन दुर्लभ है। इसका अन्तिम साध्य आवागमन या जन्म-मरण के बन्धन से उन्मुक्त होना है। जिसका साधन धर्म की आराधना है। धर्म का आधार मानस की पवित्रता, भावनाओं की उज्जवलता, तपमूलक आचार का अनुसरण है, पर केवल आदर्श की परिधि में नहीं अपितु इसकी व्यावहारिक भूमिका पर विचार करना होगा कि यह सब कब सध सकता है जब मनुष्य के घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो दूसरे शब्दों में उसके दैनिक जीवन निर्वाह में परेशानियाँ रहें, बच्चों एवं पत्नी के उदर पोषण की भी समुचित व्यवस्था न हो, बीमार होने पर औषधि न खरीद सके तो ऐसी विषम परिस्थितियों में कोई भी अपने आपको आत्मध्यान में नहीं रमा सकता। सम्भवतः इसीलिये हमारे ऋषि-महर्षियों ने आगम शास्त्र में अनेकानेक यंत्र-मंत्र-तंत्र एवं विभिन्न धार्मिक पदार्थों व वस्तुओं आदि का विस्तृत विवेचन करके दैहिक, दैविक, भौतिक समृद्धि पाने हेतु उनका आश्रय लेने का निर्देश दिया है। भारतीय साधना पद्धति में आगम शास्त्र का स्थान अन्यतम है। इसका प्रभाव भी व्यापक है। आगम शास्त्र में शाक्त तन्त्र का विलक्षण प्रभाव है। मानव को प्रतिपल ऊर्जा , प्रभाव , आत्मबल , मानसिक बल व धन बल की आवश्यकता रहती है. हमारे सनातन धर्म व विभिन्न पंथों में कुछ ऐसी चीजों का विस्तार से वर्णन मिलता है जिससे मानव अपने अन्दर की छिपी शक्तियों का सम्पूर्ण लाभ ले सकता है. विद्युत में गति है। जहाँ शब्द का होना नियम सिद्ध है। शब्द ही वज्र है अथवा उसकी अभिन्न शक्ति ही वज्र कहलाती है - ”वज्र एव वाक्“। महर्षि पतंजलि महाभाष्य में कहते हैं - ”सवाग्वज्रो यजमानं हनस्ति“ वह वाणी वज्र होकर यजमान का विनाश कर देती है। अस्तु बिजली शक्ति के भौतिक दैविक एवं आध्यात्मिक रूप होते हैं। इसीलिए मंत्रों को बहुत सोच समझ कर प्रयोग करने की बात प्रत्येक तंत्र ग्रन्थ में कही गई है। अत: ध्यान रहे इन सभी वस्तुओं को एकत्र करने में मुहूर्त एवं अन्य शुद्धियों को सदैव ध्यान रखें. हमारे यहाँ जो भी धार्मिक वस्तुएँ हैं इन सभी को धर्मशास्त्रीय पद्धति से ही तैयार किया जाता है .
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