मनुष्य के पूर्व जन्म के किये हुए कर्मों का नाम शास्त्र में भाग्य कहा जाता है। भाग्य के भरोसे पर मनुष्य की संसार यात्रा निर्भर है। संसार में धन-दौलत, स्त्री-पुत्र, इत्यादि अनेक सम्पत्तियाँ भरी पड़ी हैं, परन्तु भाग्यहीन के लिए सब व्यर्थ है, वह कहीं भी जाय सर्वत्र उसे भयंकर अभाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे मनुष्यों के सोये हुए भाग्य को जगाने के लिए अनुष्ठान सर्वोपरि है. इस के प्रभाव से भाग्य के सितारे चमकने लगते हैं। दुष्ट ग्रहों की शांति होती है। हाकिम मेहरबान बन जाते हैं। बिगड़ी दशा सुधरने लगती है। रोजी-रोजगार, दुकान-दफ्तर, वकालत, इंजीनियरिंग तथा प्रत्येक पेशे में चकाचौंध मचा देने वाली अद्भुत तरक्की होती है। यदि आपको किसी दरबार में प्रतिष्ठा प्राप्त करनी है, किसी प्रेमी पर पूरा अधिकार पाना है, यदि आपको अपनी सोती हुए कामनाओं को सफल करके जीवन बिताना है तो आपके लिए केवल अनुष्ठान ही बेहतर उपाय हो सकता है. इसमें ध्यान देने योग्य आवश्यक तथ्य यह है कि अनुष्ठान आदि में विशेष शुचिता, आसन, यम, नियम, संयम, आचार, भाव, वर्ण, गण आदि की शुद्धता पर ध्यान देना नितांत आवश्यक है , अन्यथा अनुष्ठान निष्फल रहता है. सभी जानते है कि शासन व्यवस्था में अलग-अलग विभाग (डिर्पाटमेंट) होते है। जैसे पुलिस विभाग, कोर्ट, चुंगी,विभाग आदि। अगर किसी को रिपोर्ट करना है और वह जज के यहाँ रिपोर्ट भूल से करें तो जज यही कहेगा कि पुलिस थाने में रिपोर्ट करो। तात्पर्य यह है कि जैसे यहाँ पृथक-पृथक कार्य विभाग है उसी प्रकार देवताओं पर भी अलग-अलग उत्तरदायित्व है। अपना जो अभीष्ट कार्य है उसी के अधिकारी देवता की आराधना से कार्य सफल होगा। श्री मद् भागवत द्वितीय स्कन्ध के तृतीय अध्याय में लिखा है कि जो प्राणी अपना सत्य बढ़ाना चाहे उसे ब्रह्म की पूजा करनी चाहिए। इन्द्रियों को पुष्ट रखने के लिए इन्द्र की, धन की इच्छा वालों को लक्ष्मी जी की, तेज बढ़ाने के लिए अग्नि की अन्न, हाथी, घोड़ा, आदि सवारी के इच्छुक को आठों वसुओं की, कामदेव की वृद्धि हेतु रूद्र की, अधिक बल चाहने वालों को इलादेवी की, सुन्दरता के लिए गन्धर्व की, सुन्दर स्त्री की कामना करने वालों उर्वशी की, यश कीर्ति के लिए नारायण की विद्या लाभार्थ शंकर की, विशेष विद्या के लिए सरस्वती की परिवार की रक्षा हेतु पुण्यात्मा कलानुसार राज्य में पदोन्नति के लिए मनु की, शत्रु नाश के लिए विकट राक्षस की, वीर्य वृद्धि के लिए चन्द्रमा की दीर्घायु चाहें तो अश्वनी कुमारों की, स्त्री सुन्दर पति चाहे तो उसे पार्वती की, बगलामुखी की, कष्ट निवारण के लिए कामात्मिका दुर्गा देवी की आराधना करनी चाहिए। सतीत्व वृद्धि के लिए सती सावित्री की, सती अनुसूइया की मर्यादा के लिए श्री राम जी की, सुख आनन्द प्राप्ति हेतु श्री कृष्ण जी की, फोड़ा फुन्सी, रक्त विकार से रक्षा के लिए श्री हनुमान जी की, लाटरी सट्टा में सफलतार्थ स्वप्नेश्वरी देवी की, रोग निवारण के लिए श्री गंग जी की आराधना करनी चाहिए। आराधना मंत्र विधि आदि अपने निकटस्थ अनुभवी विद्वान से जान लेना चाहिए। पूजन स्वयं करना उत्तम होगा। यदि अन्य के द्वारा पूजन करायें तो यजमान यह देख लें कि मेरा गण क्या है। तथा जप पूजन करने वाले का गण क्या है। यदि परस्पर देवता व राक्षस गण है। तो लाभ होना असम्भव है।
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