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VASTU SHASTRA वास्तु शास्त्र
धर्मशास्त्रीय निर्देशों के अनुसार वास्तु पूजा प्रकुर्वीत ग्रहारम्भे प्रवेशे च अर्थात् भूमि का परीक्षण एवं पूजन अवश्य करना चाहिए। वर्तमान समय में जनमानस का रूझान (वास्तु-शास्त्र) की ओर बढ़ा है। यहाँ तक कि विदेशों में भी वास्तु पर शोध होकर भवनों का निर्माण होने लगा है यदि निवास अथवा व्यापारिक स्थान बनाने के पूर्व वास्तु-शास्त्र के निर्देशों पर ध्यान दें लें तो जीवन ऐश्वर्यमय एवं सुख-शांति से व्यतीत होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन-निर्माण करने से पूर्व शिलान्यास करना चाहिए जिस दिशा में शिलान्यास किया जाता है, उसका विचार सूर्य संक्रान्ति के आधार पर दो दिशाओं के मध्य भाग (कोण) के अन्तर्गत किया जाता है। शिलान्यास के लिये पाँच शिलाओं का स्थापन करना चाहिए। स्थापन से पूर्व यथासम्भव देवार्चन एवं शिला-पूजन करना चाहिए। भवन-निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि दीवार सीधी और एक आकृति वाली होनी चाहिए, कहीं से मोटी और कहीं से पतली दीवार होने से उसका प्रभाव गृहस्वामी के लिए कष्टप्रद होता है। भवन में कक्षों के अर्न्तगत रोशनी और हवा का ध्यान रखते हुए खिड़कियों तथा सामान आदि के लिये अलमारी अवश्य करना चाहिए। विस्तार से पढने के लिए
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